“बिनोद-युग” में कृष्ण की विचारधारा की प्रासंगिकता
कुछ दिनों पूर्व एक व्यक्ति ने एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर स्वयं के नाम “बिनोद” को कमेंट बॉक्स में लिख दिया। किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा यह बात सोशल मीडिया यूजर्स के ध्यान में लाई गई और उसके बाद सोशल मीडिया यूजर्स ने “बिनोद” शब्द का इतना प्रयोग किया कि “बिनोद” वायरल हो गया। दूसरों की नकल करने की प्रवृत्ति के कारण इस युग को “बिनोद-युग” की संज्ञा दी जा सकती है। इस संबंध में विचारणीय बिंदु यह है कि क्या इस “बिनोद-युग” में भगवान कृष्ण की विचारधारा प्रासंगिक है या सिर्फ उनकी आराधना से ही बात बन जाएगी।
भगवान कृष्ण की विचारधारा दूसरों से प्रेरित न होकर पूर्णतः मौलिक थी। सामान्यतः युद्ध से भागना कायरता माना जाता है, लेकिन भगवान कृष्ण ने आवश्यकता होने पर युद्ध से पलायन करके भी युद्ध में जीत दर्ज की है। उस समय के परम सम्मानीय व्यक्तियों भीष्म पितामह, गुरु द्रोण आदि की सोच पर प्रश्नचिन्ह लगाने का साहस किसी के पास नहीं था, लेकिन भगवान कृष्ण ने उन्हें भी उनके विचारों की संकीर्णता से अवगत कराया था।
उन्होंने प्रेम और करुणा के नए आयाम स्थापित किए। धर्म की स्थापना के लिए उन्होंने प्रतिज्ञाएं भी तोड़ी और छल भी किया, लेकिन अधर्म को धर्म पर हावी नहीं होने दिया।
मुझे प्रतीत होता है कि पूर्णतः मौलिक विचारधारा के धनी भगवान श्री कृष्ण की आराधना मात्र से बात नहीं बनने वाली है, बल्कि हमें भी उन्हीं की तरह सोचना प्रारंभ करना होगा। “बिनोद-युग” कॉपी-पेस्ट का युग है। इस युग में मौलिकता अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है। ऐसे में भगवान कृष्ण की विचारधारा ही है, जो इस स्थिति को सुधारने में सक्षम है। हमें भगवान कृष्ण की तरह मौलिक विचारों को विकसित करना होगा। और यदि कॉपी-पेस्ट में ही रुचि है, तो भगवान कृष्ण की विचारधारा का अनुसरण ही उचित है। कॉपी करनी है तो उसकी कीजिए,जो सर्वोत्तम है। कृष्ण को पढ़ें, सीखे और वायरल करना है तो “बिनोद” को नहीं, कृष्ण के विचारों को वायरल करें, ताकि पृथ्वी निवास करने के लिए बेहतरीन स्थान बन सके।
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