कोरोना के प्रभाव: अशुभ बनाम शुभ
कोरोना काल में बहुत कुछ अशुभ हो रहा है, यह लेख लिखे जाने तक पूरे भारत में कोरोना के कारण 27000 से अधिक देशवासियों की मृत्यु हो चुकी हैं। वर्तमान में “अशुभ” पर कोई नियंत्रण नहीं है, बल्कि तीव्र गति से अभिवृद्धि ही हो रही है। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन एवं उनका परिवार भी कोरोना की गिरफ्त में आ चुके हैं। कोरोना के कारण देश को जन-धन का जो नुकसान हो रहा है, उसकी क्षतिपूर्ति असंभव है।
परंतु ईश्वर/प्रकृति का ऐसा विधान है कि “शुभ” कभी भी “अशुभ” के अंत का इंतजार नहीं करता है, बल्कि हर वक्त घटित होता रहता है और “शुभ” का प्रभाव इतना व्यापक होता है कि अधिकतर “अशुभ” के वृक्षों पर “शुभ” के फूल भी प्रस्फुटित होते हैं। इसी विधान के अनुरूप कोरोना काल में एक “शुभ” भी घटित हो रहा है और वह यह है कि अब शादियों में बड़ी संख्या में मेहमानों को आमंत्रित करने एवं विशाल भोज के आयोजन करने की परंपरा पर सरकार ने रोक लगा दी है, जिससे शादी समारोह के आयोजन पर होने वाले व्यय पर समुचित नियंत्रण स्थापित हुआ है। बहुत से पिताओं को, जिनकी पुत्रियों/पुत्रों ने विवाह योग्य आयु को प्राप्त कर लिया है, निश्चित रूप से सुकून मिला होगा।
विवाह समारोह पर होने वाले व्यय के आधार पर यदि विश्लेषण किया जाए तो कुल चार प्रकार के लोग होते हैं:-
1. धनाढ्य लोग:- इनकी हार्दिक इच्छा होती है कि इनकी संतानों की शादियां बड़े ही धूमधाम से हो। इन्हें पैसों की कोई परवाह ही नहीं होती है और यह अपनी संतानों की शादियों को अपना वैभव प्रदर्शित करने के एक तरीके के रूप में देखते हैं। यह मुख्यतः व्यवसायी या बड़े पदाधिकारी या नेता होते हैं। इनका शादी समारोह में अत्यधिक खर्च करने का एक कारण यह भी होता है कि इनकी आय का एक हिस्सा इन्हें नकद के रूप में प्राप्त होता है, जो इन्हें किसी न किसी तरह से खर्च करना होता है, क्योंकि इस आय की जानकारी यह लोग आयकर विभाग को देने के इच्छुक नहीं होते हैं।
2. उच्च मध्यम वर्ग के लोग:- इन लोगों के पास धनाढय लोगों की तरह अनाप-शनाप पैसा तो नहीं होता, लेकिन इतना पैसा होता है कि वह अपने स्तर को प्रदर्शित करने एवं बनाए रखने के लिए ठीक-ठाक खर्च कर सकते हैं। यह शादी में अत्यधिक खर्च कर समाज को यह संदेश देना चाहते हैं कि इन्हें धनाढय लोगों से किसी भी प्रकार से कम नहीं माना जाए।
3. मध्यम/निम्न आय वर्ग के लोग:- यह वे लोग हैं, जो धनाढ्य/उच्च मध्यम वर्ग के लोगों द्वारा स्थापित मानकों को अपना आदर्श मानते हैं और शादी-समारोह के उनके तरीकों का अनुसरण करते हैं। इनके द्वारा शादी-समारोह के लिए किए गए व्यय का एक हिस्सा (परिस्थिति अनुसार इसका प्रतिशत भिन्न-भिन्न होता है) इन्हें ऋण लेकर ही खर्च करना पड़ता है। यह शादी के खर्च के लिए लिया गया ऋण इन्हें भविष्य में चुकाना पड़ता है। और इसी कारण शादियों में किया गया खर्च इनके लिए परेशानी का सबब होता है, किंतु इनमें इतना सामर्थ्य भी नहीं होता कि ये समाज की स्थापित व्यवस्था को नकार सकें और शादी करने के सादगीपूर्ण तरीकों को अपना सकें। कोरोना के कारण शादी-समारोहों के आयोजन पर जो सीमाएं सरकार द्वारा निर्धारित की गई हैं, उनका सर्वाधिक फायदा इसी वर्ग को हो रहा है। यह संख्यात्मक आधार पर सबसे बड़ा वर्ग है। यदि सरकार कोरोना की समाप्ति के उपरांत भी शादी-समारोहों के आयोजन पर लगाए गए संख्यात्मक एवं अन्य प्रतिबंध जारी रखती है, तो यह वर्ग कर्ज में दबे रहने की बजाय अपना जीवन तुलनात्मक रूप से अधिक सरलता से व्यतीत कर सकता है। इस प्रकार देश के औसत जीवन स्तर में सकारात्मक बदलाव संभव है, लेकिन इसके लिए सरकार की सजगता आवश्यक है। इस क्रम में राजकीय कर्मचारियों के लिए जारी आदेश भी प्रशंसनीय है, जिसके अनुसार शादी समारोह में 50 से अधिक व्यक्ति होने पर समारोह में शामिल राजकीय कर्मचारी द्वारा प्रशासन को इसकी सूचना दी जानी अनिवार्य है। सूचित नहीं करने की स्थिति में समारोह में शामिल राजकीय कर्मचारी के विरुद्ध कार्यवाही की जाएगी। उक्त समस्त प्रतिबंधों/ आदेशों को कोरोना के अंत के उपरांत भी अप्रभावी नहीं किया जाना चाहिए।
4. स्वतंत्र विचारक/ समाज सुधारक:- यह वह वर्ग है, जिसके पास पैसे अधिक हो या कम हो, वह समान स्थिति में रहता है। इन लोगों के पास स्वतंत्र रूप से विचार करने की शक्ति होती है और इस कारण सामाजिक कुरीतियां इनके जीवन का हिस्सा नहीं बन पाती। ये बुद्धिजीवी लोग शादी समारोह में भारी खर्च कर एक दिन की बादशाहत का प्रदर्शन करने के लिए अपनी जीवनशैली पर अनावश्यक आर्थिक दबाव निर्मित नहीं होने देते हैं। या तो ये अत्यंत सादगीपूर्ण तरीके से विवाह करते हैं या कोर्ट मैरिज का तरीका अपनाते हैं। इनके पास बहुत अधिक धन हो, तो भी यह विवाह-समारोह पर व्यर्थ खर्च कर सामाजिक कुरीतियों को प्रोत्साहित नहीं करते हैं। लेकिन इन लोगों की संख्या बहुत ही कम है और सामान्य लोगों पर इनका प्रभाव भी धनाढ्य लोगों की तुलना में नगण्य है। जैसे-जैसे ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जाएगी, समाज की आर्थिक एवं वैचारिक समृद्धि में बढ़ोतरी होती चली जाएगी। इस संबंध में जग्गी वासुदेव (सद्गुरु) भी एक उदाहरण हैं। उनकी शादी में न कोई फूल माला थी, न कोई गवाह। “आज से तुम मेरी पत्नी हो” यह वाक्य कहने मात्र से उनकी शादी हो गई। यदि आपसी विश्वास प्रगाढ़ हो, तो फूलमालाओं और गवाहों की क्या आवश्यकता है!
अंत में एक ओर “शुभ मिश्रित अशुभ” या “अशुभ मिश्रित शुभ” की चर्चा करना चाहूंगा। वह यह है कि यदि बड़ी-बड़ी शादियों में नाबालिगों को लाइटें सिर पर रखकर चलते हुए देखकर आपका मन व्यथित होता था, तो आपको अब इस शोषण का मूकदर्शक बनने से छुटकारा तो मिल ही गया होगा। यह अलग बात है कि समस्या खत्म नहीं हुई है, बल्कि उनका शोषण कहीं और हो रहा होगा या वे कहीं ना कहीं किसी अन्य समस्या से जूझ रहे होंगे। समस्याओं का अंत तो तब ही संभव है, जब मूकदर्शक बने रहने की प्रवृति को त्याग कर देश के प्रत्येक नागरिक के द्वारा अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई जाए। हमें जो अनुचित प्रतीत होता है, उसका विरोध करना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है ।
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